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Tuesday, March 16, 2010

सबसे बड़ा कसूर जिंदगी का...
आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा कसूर क्या है? चलिए...सोचकर बताइए, तब तक मैं अपनी बात कर लूं। दरअसल उस दिन मैं अपने मित्र डॉ. संतोष राजपुरोहित के घर गया था। वह अर्थशास्त्र से गोल्डमैडलिस्ट हैं और शहर के एक गल्र्स कालेज में पढ़ाते हैं। अचानक मेरी नजर मेज पर पड़ी एक पत्रावली पर जाकर टिक गई। पढऩे के बाद मैं पसोपेश में था कि इतने कम शब्दों में भला कोई जिंदगी का फलसफा कैसे बता सकता है? गलतियां इंसान की फितरत है। कहते हैं जब कुछ करेंगे ही नहीं तो अच्छे-बुरे का भान कैसे होगा? लेकिन जनाब, उस काम से क्या फायदा जिसका आगाज उचित समय पर नहीं हो। मैं जिस पत्रावली का जिक्र कर रहा हूं, वह सुमित अय्यर की थी जिसमें उन्होंने बड़ी अच्छी बातें कही हैं। बकौल सुमित.....
दिग्गज बनने का सपना जरूर जिंदगी का
'जिंदादिली जिंदाबाद' नारा भरपूर जिंदगी का
मेरे सहचरों का पथभ्रष्ट होना
यह अंश नशे में चूर जिंदगी का
हौसलों पर काबिज आलस्य
यह अध्याय बड़ा क्रूर जिंदगी का
अवसरों का मिलना, बिछडऩा दस्तूर है
एक यही किस्सा मशहूर जिंदगी का
छूटे मौके कभी लौटकर नहीं आते
यही सबसे बड़ा कसूर जिंदगी का।
जी हां, मैं वक्त की नजाकत की बात कर रहा हूं। आपाधापी के दौर में आज हर कोई व्यस्त है। किसी के पास फुर्सत नहीं है। जिससे बात कीजिए, कहता मिल जाएगा कि क्या करें यार, वक्त नहीं मिलता। किसी ने ठीक कहा है जिसे वक्त की परवाह नहीं है वक्त भी उसकी परवाह नहीं करता। सच बताऊं, मैंने इस 'मंच' के जरिए आपसे मुखातिब होने के लिए बड़ा इंतजार किया है। पहले तो ब्लाग बनाने के लिए पत्रकार मित्र राजू रामगढिय़ा को वक्त नहीं मिला और दो माह के नियमित उलाहने के बाद बेचारे ने दरियादिली दिखा दी तो मुझे 'शब्दों का सफर' शुरू करने के लिए वक्त नहीं मिला। बहानेबाजी के लिए तो कह सकता हूं कि खबरनवीसों को वक्त ही कहां मिलता है? हालांकि यह महज बहाना नहीं थोड़ी सच्चाई भी है, विशेषकर अपने जैसे पत्रकारों के लिए तो कह ही सकता हूं कि हमारे पास वक्त 'भी' नहीं है।
वक्त बड़ा अनमोल है। आपने 'वक्त' फिल्म जरूर देखी होगी, अगर नहीं तो एक बार जरूर देखिए। बलराज साहनी अभिनीत इस फिल्म ने यह साबित किया कि वक्त से बड़ा कोई नहीं है। सियासत की बात करें तो आपने अटलबिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्रित्व काल देखा है जब हर कोई 'अटल धुन' गा रहा था आज वक्त ने पलटा खाया तो अटलजी गुमनाम हो गए, न मीडिया को याद है न ही पब्लिक को। वनडे मैच के इतिहास में सचिन ने दोहरा शतक क्या लगाया, जो लोग सचिन को इतिहास बताने से नहीं चूक रहे थे वे अब उनमें भविष्य तलाश रहे हैं। वक्त की बात हो और मुलायम के पुराने सिपहलसार अमरसिंह को छोड़ दें तो यह अन्याय है। वक्त का ही तकाजा है कि कभी हर मोर्चे पर मुलायम की रक्षा के लिए ढाल बनने वाले अमर आज उन पर विषैले शब्दों के बाण चला रहे हैं। चलिए अब आप मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा कसूर तो समझ ही गए होंगे, रही बात आपकी तो कुछ वक्त देता हूं लेकिन हमसे जरूर शेयर कीजिएगा। इसका मुझे इंतजार रहेगा। फिलहाल 'वक्त पुराण' में आज इतना ही। मुझे भय है कि वक्त की कमी बताकर कहीं आप इस मंच से दूरी न बना लें। लेकिन उम्मीद है कि आप ऐसा नहीं करेंगे।

2 comments:

  1. प्रिय भाई गोपाल जी, सबसे पहले तो आपको ब्लॉग मंच के माध्यम से हम सबके बीच आने के लिए हार्दिक बधाई.और भाई राजू रामगढ़िया का भी धन्यवाद कि इतनी व्यस्तता के बीच आपका ब्लॉग बनाकर दिया.. "क्या मिडिया सही दिशा में जा रहा है ? " आपने अपने ब्लॉग में पहला सवाल उठाया है...... मैं अपनी दृष्टि से देखूं ......तो कहूँगा कि आज सही दिशा में कोई नहीं जा रहा है...दिशा की बात छोड़िए...लोगों को पता ही नहीं है कि वे जा कहाँ रहे हैं...समय ही नहीं है..पर दौड़ में शामिल है..एक दूसरे से आगे जाने की होड़.........आपने अपनी सम्पूर्ण प्रोफाइल में लिखा है...आई एम् ओनली जर्नलिस्ट .......लेकिन मेरा तो कहना है कि आप जर्नलिस्ट से पहले ...इन्सान हैं..... बाकि रही बात समय की..... तो समय आज भिखारी के पास भी नहीं है..हमारे मोहल्ले में आने वाला एक भिखारी चार घरों के दरवाजे खटखटाता है...फिर पहले घर से ......फिर दूसरे घर से.......इस तरह चारों घरों से भीख मांगता है.....यदि कोई भीख देने में देरी करता है तो वह दरवाजे के आगे खड़ा रहकर इन्तजार नहीं करता ..पीछे मुड़ कर भी नही देखता .....चला जाता है.....शब्दों का सफ़र अब शुरू हो गया है...सिलसिला जारी रहे ....इसी इन्तजार में...दीनदयाल शर्मा, बाल साहित्यकार, मानद साहित्य संपादक , टाबर टोली, हनुमानगढ़ जं. 335512 , http://deendayalsharma.blogspot.com, E-mail : deen.taabar@mail.com, Mob : 09414514666

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