गोपाल झा: पेशे से पत्रकार हैं लेकिन छोटी सी आयु में श्रमिक राजनीति की बेहतरीन पारी खेल चुके हैं। मौजूदा राजनीतिक प्रक्रिया से खफा हैं लेकिन लोकतंत्र की विसंगतियां दूर होने को लेकर आशान्वित हैं। पत्रकारिता का मौजूदा दौर उनके मन को कचोट रहा है। यही वजह है कि वे इसमें सुधार की भरपूर गुंजाइश देखते हैं। मीडिया अब मिशन नहीं उद्योग है, ऐसे में वे पेशेवर पत्रकारों को अपनी मेहनत व ईमानदारी की बदौलत कंपनी की मजबूरी बनने की सीख देते हैं। बगैर किसी राग-लपेट के बेबाक टिप्पणी करना उनकी फितरत है, उनका यही अंदाज उन्हें समकक्ष पत्रकारों में अलग स्थान दिलाता है। मूलत: मधुबनी (बिहार) के गांव शाहपुर में जन्म लेकिन 19 साल पूर्व हनुमानगढ़ (राजस्थान) में आ बसे। विभिन्न समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन के अलावा 'इंदुशेखरÓ नामक पाक्षिक अखबार निकाला लेकिन पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं कर पाने की जिद ने नौकरी के लिए बाध्य किया। बहरहाल 'दैनिक भास्करÓ में ब्यूरो चीफ के रूप में कार्यरत।
राजू रामगढिय़ा, पत्रकार ईटीवी
Tuesday, March 2, 2010
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भई गोपाल जी, उन्नीस सालों में हनुमानगढ़ में रह कर आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में जो पेठ बनाई है...वह तारीफ़ के काबिल है. बधाई..... एक ईमानदार...कर्मठ, निष्ठावान ..पत्रकार के लिए .अनेक उपमाएं कम पड़ जाती हैं ...मेरी ओर से फिर से बधाई......
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