सानिया, शोएब और....!
मजहब व क्षेत्रीयता के नाम पर सियासत करने में माहिर बाल ठाकरे दिल के बेहतरीन डॉक्टर भी हैं, यह पहली बार पता चला। उन्होंने सानिया मिर्जा तथा शोएब मलिक प्रकरण में 'सनसनीखेज' खुलासा किया कि सानिया का दिल पाक क्रिकेटर के लिए धड़कता है, इसलिए अब वे हिंदुस्तान की तरफ से खेलने की हकदार नहीं हैं। कहते हैं फितरत को बदलना मुश्किल होता है, शायद ठाकरे साहब के साथ भी यही समस्या है। हर मसले को जाति, धर्म व क्षेत्र से जोडऩा और उस पर जहरीले शब्दों का तीर चलाना कोई उनसे सीखे। (बाकी को जरूरत नहीं लेकिन उनका भतीजा जरूर पारंगत हो गया)
बाला साहब की इस टिप्पणी से किसी को आश्चर्य हुआ हो, ऐसा नहीं है। इससे 'बेहतर' टिप्पणी की उम्मीद व्यर्थ है लेकिन एक सवाल जेहन में कौंधता है कि इस तरह के खास अवसरों पर वे चुप रहने से बाज क्यों नहीं आते? आखिर वे हैं क्या? (इसका जवाब भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मिल चुका है।)
सानिया-शोएब निकाह कर रहे हैं तो मुझे नहीं लगता कि किसी को परेशानी होनी चाहिए। यह उनकी पर्सनल लाइफ है। किसी का दिल कब और किस पर आ जाए, पता थोड़े न है! फिर वे दोनों खेल जगत की अंतरराष्ट्रीय हस्ती हैं। क्या शादी जैसे निजी संबंधों के लिए भी किसी को सार्वजनिक स्वीकृति लेने की जरूरत है?
समूचे घटनाक्रम में इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया भी कुछ कम नहीं है। ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर जिस तरह एक ही खबर को बार-बार दोहराने की प्रक्रिया चल रही है, लगता नहीं, इससे उनकी टीआरपी बढऩे वाली है। मतलब साफ है। ठाकरे और मीडिया को भ्रम है कि देश और दुनिया को उनकी बातों में दिलचस्पी है। इसलिए वे बात को बतंगड़ बताने से नहीं चूकते। अगर ऐसा है तो यह अभिमान ठीक नहीं है। लिहाजा, ठाकरे और मीडिया के लिए ही मानो किसी ने कहा भी है....
मजहब व क्षेत्रीयता के नाम पर सियासत करने में माहिर बाल ठाकरे दिल के बेहतरीन डॉक्टर भी हैं, यह पहली बार पता चला। उन्होंने सानिया मिर्जा तथा शोएब मलिक प्रकरण में 'सनसनीखेज' खुलासा किया कि सानिया का दिल पाक क्रिकेटर के लिए धड़कता है, इसलिए अब वे हिंदुस्तान की तरफ से खेलने की हकदार नहीं हैं। कहते हैं फितरत को बदलना मुश्किल होता है, शायद ठाकरे साहब के साथ भी यही समस्या है। हर मसले को जाति, धर्म व क्षेत्र से जोडऩा और उस पर जहरीले शब्दों का तीर चलाना कोई उनसे सीखे। (बाकी को जरूरत नहीं लेकिन उनका भतीजा जरूर पारंगत हो गया)
बाला साहब की इस टिप्पणी से किसी को आश्चर्य हुआ हो, ऐसा नहीं है। इससे 'बेहतर' टिप्पणी की उम्मीद व्यर्थ है लेकिन एक सवाल जेहन में कौंधता है कि इस तरह के खास अवसरों पर वे चुप रहने से बाज क्यों नहीं आते? आखिर वे हैं क्या? (इसका जवाब भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मिल चुका है।)
सानिया-शोएब निकाह कर रहे हैं तो मुझे नहीं लगता कि किसी को परेशानी होनी चाहिए। यह उनकी पर्सनल लाइफ है। किसी का दिल कब और किस पर आ जाए, पता थोड़े न है! फिर वे दोनों खेल जगत की अंतरराष्ट्रीय हस्ती हैं। क्या शादी जैसे निजी संबंधों के लिए भी किसी को सार्वजनिक स्वीकृति लेने की जरूरत है?
समूचे घटनाक्रम में इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया भी कुछ कम नहीं है। ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर जिस तरह एक ही खबर को बार-बार दोहराने की प्रक्रिया चल रही है, लगता नहीं, इससे उनकी टीआरपी बढऩे वाली है। मतलब साफ है। ठाकरे और मीडिया को भ्रम है कि देश और दुनिया को उनकी बातों में दिलचस्पी है। इसलिए वे बात को बतंगड़ बताने से नहीं चूकते। अगर ऐसा है तो यह अभिमान ठीक नहीं है। लिहाजा, ठाकरे और मीडिया के लिए ही मानो किसी ने कहा भी है....
गुरूर उसपे बहुत सजता है, मगर कह दो
इसी में उसका भला है कि गुरूर कम कर दे।
इसी में उसका भला है कि गुरूर कम कर दे।