tag:blogger.com,1999:blog-119828079329442579.post3069498282709458944..comments2023-05-14T07:34:18.107-07:00Comments on gopal jha ki kalam se: dristhi-pathhttp://www.blogger.com/profile/06344874779543646114noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-119828079329442579.post-84129652616924515452010-05-16T11:29:11.502-07:002010-05-16T11:29:11.502-07:00योजना देखते
नहीं आता समझ
कौन किसे पीस रहा है?
योजन...योजना देखते<br />नहीं आता समझ<br />कौन किसे पीस रहा है?<br />योजना को सरकार<br />या सरकार को योजना!<br />रंग-बिरंगे प्रलोभन<br />छनछनाती बातेें हीं फसाती हैं।<br />नहीं दिख पाते <br />भीतर के गंभीर परिणाम<br /><br />कप्पिल सिब्बल की सोच की बात करें तो वो बहुत ही अच्छी लगती है, उनकी योजना की सफलता-विफलता का असलियत में निर्धारण उसे लागू करने वालो पर निर्भर करता है। कि वे लोग उस योजना को किस हद तक सफलता से लागू कर पाते हैं। जब सिब्बल को इस संबंध में कोई शिकायत मिले, तो ही वे उन समस्याओं का निस्तारण करवा सकते हैं। <br />क्रियान्विति के मौके आते हैं तो वह नौकरशाही व लालफीताशाही उन पर किस तरह कुंडली मारकर बैठ जाती है। यही बात ही तो सभी योजना को लाभप्रद की बातों को समाप्त कर देती हैं। योजना वहीं विफल होती हैं, जहां उन्हें लागू करवाने में कोताही बरतते हैं। कोताही वे लोग ही बरतते हैं, जो योजना समन्वयकों (किसी बड़े अधिकारी के) के संबंधी होते, जिनकी पहुंच ऊपर तक होती है।shabad-vaanihttps://www.blogger.com/profile/05167437938108732322noreply@blogger.com